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नौवां सूक्त ॠ. 5. 70
सत्ताके संवर्धक और उद्धारक
[ ऋषि हमारी सत्ता और उसकी शक्तियोंके उस विशाल व बहुविध पोषणकी कामना करता है जिसे वरुण और मित्र प्रदान करते हैं, साथ ही वह यह भी कामना करता है कि वे दिव्य स्थिति समग्र प्रतिष्ठाकी ओर हमारे बलको पूर्ण रूपसे प्रेरित करें । वह उनसे प्रार्थना करता है कि वे विध्वंसकोंसे उसकी रक्षा व उद्धार करें एवं उनके विरोधी नियंत्रणको हमारे नाना कोषों व देहोंमें देवत्वकी वृद्धिको कुंठित करनेसे रोकें । ] १
पुरूरुणा चिद्वयस्त्यवो नूनं वां वरुण । मित्र वंसि वां सुमतिम् ।।
(वरुण मित्र) हे वरुण ! हे मित्र ! (वाम्) तुम दोनोंका (अव:) हमारी सत्ताका पोषण, (चित् हि नूनम्) अब निश्चयपूर्वक, (उरुणा) विशा- लता1के कारण (पुरु अस्ति) बहुविध है । (वां सुमति) तुम दोनोंके मनकी पूर्णताका (वंसि) मैं उपभोग करना चाहूँगा । २ ता वां सम्यगद्रुह्वाणेषमश्याम धायसे । वयं ते रुद्रा स्याम ।।
हे मित्र और वरुण ! (अद्रुह्वाणा) तुम वे हो जो हमें द्रोह व अनिष्द्2 के हाथोंमें नहीं सौंपते । (धायसे) अपने आधारकी स्थापनाके लिए हम _____________ 1. अपने आध्यात्मिक तत्वोंके बहुविध ऐश्वर्य सहित असीम सत्य-भूमिकाकी विशालता । इसकी शर्त है दिव्य प्रकृतिकी अपने निजी विचार-मानस और चैत्य मनकी पूर्णता-सुमति-जो देवोंकी कृपाके रूपमें मनुष्यको प्राप्त होती है । 2. दस्युओंके, हमारी सत्ताके विनाशकों और उसकी दिव्य उन्नतिके शत्रुओंके तथा सीमा और अज्ञानके पुत्रोंके किए हुए अनिष्ट । २०७ (ता वां) उन तुम दोनोंकी (सम्यक् इषम्) प्रेरणाकी पूर्णशक्तिका (अश्याम) उपभोग करें । (रुद्रा) हे तुम प्रचंड देवो ! (वयं ते स्याम) हम ऐसे हो जाएं । ३ पातं नो रुद्रा पायुभिरुत त्रायेथां सुत्रात्रा । तुर्याम दस्यून् तनूभि: ।।
(रुद्रा) हे प्रचंड देवताओ1 ! तुम (पायुभि:) अपने रक्षणोसे (नः पातम्) हमारी रक्षा करो (उत) और (सुत्रात्रा) अपने पूर्ण परित्राणसे (त्रायेथाम्) हमारा उद्धार करो । (दस्यून्) विध्वंस करनेवाले शत्रुओंको हम (तनूभि) अपनी शारीरिक सत्ता द्वारा (तुर्याम) चीरकर पार कर जाएं । ४ मा कस्याद्भुतक्रतु यक्ष भुजेमा तनूभि: । मा शेषसा मा तनसा ।।
(अद्भुतक्रतू) हे संकल्पशीक्तमें सर्वातीत देवो ! (तनूभि:) अपनी शारीरिक सत्ताओंमें हम (कस्य) किसीका भी2 (यक्षम्) नियंत्रण (मा भुजेम) सहन न करें, (मा शेषसा) न अपनी सन्ततिमें, (मा तनसा) नाहीं अपनी रचनामें [ यक्षं भुजेम ] किसीका नियंत्रण सहन करें । __________ 1. रुद्र देवो । रुद्र भगवान् है जो हिंसा और युद्धके द्वारा होनेवाले हमारे विकासका स्वामी है । वह अंधकारके पुत्रोंका तथा उनके द्वारा मनष्यमें निर्मित की गई बुराईका घातक और विध्वंसक हैं । वरुण और मित्र दस्युओंके विरुद्ध ऊर्ध्वमुख संघर्षमें सहायकके रूपमें इस रुद्रत्वको धारण करते हैं । 2. अर्थात् विनाशकोंमेंसे किसी का भी । २०८
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